सं.पु.
सं.युग
1.संसार, दुनिया।
- उदा.--1..स्री नारायण संभरां, इण कारण हरि अज्ज। जिण दिन ओ जुग छंडहां, तिण दिन तोसूं कज्ज।--ह.र.
- उदा.--2..जुग में मिळण अजब है मिळ विछड़ौ मत कोय। विछड़्यां मिळणा दुलभ है, रांम करै जदां होय।--अज्ञात
2.पांच वर्ष तक वृहस्पति के एक ही राशि में स्थित रहने का एक काल.
3.समय, काल।
- उदा.--खाफर घड़ सु साहे खांडौ, राव चाड कनवजे राव। रिणि चढ़ि अचळ मेर द्रू रतनौ, जुग जासी पिण नांम न जाय।--राठौड़ रतनसिंघ ऊदावत री वेलि
4.पौराणिक काल गणना के अनुसार काल का एक दीर्घ परिमाण। ये संख्या में चार माने जाते हैं। यथा--सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग।
- उदा.--1..चतुरमुख चतुरवरण चतुरात्मक, विग्य चतुर जुग विधायक। सरवजीव विस्वक्रित ब्रह्मसू, नरवर हँस देहनायक।--वेलि.
- उदा.--2..आगै जोम पराक्रम इसड़ौ। जुग द्वापुरि जोधां मझि जिसड़ौ।--सू.प्र.
- मुहावरा--जुगजुग--लम्बे समय तक, बहुत दिनों तक, अनंत काल तक।
5.यजुर्वेद।
- उदा.--रुघ जुग वेद न्रिसींघ है सारव, काटकड़ी बाज़ै केवांण। लोडति घड़ा रतनसीउ लाडौ। जुधि हथळेवै जुड़ै जुवांण।--राठौड़ रतनसिंघ ऊदावत री वेलि
6.एक साथ दो वस्तुएँ, युग्म, जोड़ा।
- उदा.--1..मसतग पवित्र करिस मधुसूदन। बंदे तूझ चरण जुग-बदंन।--ह.र.
- उदा.--2..साझ आभ्रणेस छतीस। तनि लछण सुभ जुग-तीस।--सू.प्र.
7.चार की संख्या* (डिं.को.)
9.देखो 'जुऔ' (2) (जैन) वि.--एक और एक का योग, दो।