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जुरा
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.जरा
1.वृद्धा अवस्था, बुढ़ापा।
उदा.--
आहेड़े जमरांण डांण मंडे दीहाड़ी, सर क्रम बंध संधिया चाप आवरदा चाडी। मोह वास मंडवै विघन सड़वा विसतारै, कर हाका हाकंत
जुरा
कुत्ती हलकारै। चत्र दिस जाइ न सकै चक्रति निजर काळ देखै नयण। म्रिग जीव सरण मारीजतौ, राख-राख राधा-रमण।--ज.खि.
उदा.--
2..भै छाडौ निरभै भजौ, गुणां रहित गोपाळ। अगम ठौर आणंद सदा,
जुरा
जनम नहिं काळ।--ह.पु.वा.
2.मृत्यु, मौत, अवसानकाल।
उदा.--
1..जोग विचारी
जुरा
हम जीति, अगम बस्त सो पाई। निरभै भया निरंतरि मेळा, उलटी ताळी लाई।--ह.पु.वा.
उदा.--
2..बाघउत ऊचरै, सुणौ खटतीस वंस,
जुरा
आगळि रहै वंदू जाहीं। भोज वीकम तणौ सुजस सारै भुयण, नरां तिण वार रा मंडप नाहीं।--राव गांगौ
रू.भे.
जरा।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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