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जूती  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
देखो 'जूतौ' (अल्पा., रू.भे.)
  • मुहावरा--1.जिण री जूती उण रौ ई सिर--जिसकी जूती उसी का शिर--स्वयं की वस्तु और स्वयं को ही हानि अर्थात्‌ पूर्ण रूप से उत्तरदायित्व.
  • मुहावरा--2.जूतियां उठाणी--नीच कार्य करना। दासत्व करना। सेवा करना.
  • मुहावरा--3.जूतियां काख में घालणी--जूतियां बगल में दबा कर भागना। धीरे से चलता बनना.
  • मुहावरा--4.जूतियां खाणी--अपमान सहना। जूतियों से पिटना। भली-बुरी बातें सुनना.
  • मुहावरा--5.जूतियाँ गांठणी--जूतियों की मरम्मत करना। चमार का कार्य करना। अत्यन्त निकृष्ट धंधा करना.
  • मुहावरा--6.जूती जकै रौ ई सिर--देखो--'जिण री जूती उण रौ ई सिर।'
  • मुहावरा--7.जूती जै'ड़ौ तेल--जैसी जूती वैसा तेल अर्थात्‌ नीच का सम्बन्ध नीच से ही होता है।
  • मुहावरा--8.जूती री तळी होणौ, जूती रै बराबर--जूती के समान। बहुत तुच्छ। नाचीज.
  • मुहावरा--9.जूती सूं पग कटणौ (बढ़णौ)--जूती से पांव कटना, अपनों से ही हानि पहुँचना।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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