HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

जोगण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'जोगणी' (रू.भे., डिं.को.)
  • उदा.--1..जमला मैं जोगण भई, पै'रै म्रग की खाल। बन बन सारौ ढूंढ़ियौ, करत जमाल जमाल।--रसराज
  • उदा.--2..बीर नाच रहिया छै। जोगण ढाक बजावै छै। छप्पर भरै छै।--सूरै खींवै कांधळोत री वात
  • उदा.--3..धर अंबर रज डंबर अंधारां। जोगण करि चवसठि जैकारां।--सू.प्र.
  • उदा.--4..यौ गहणौ यौ बेस अब, कीजै धारण कंत। हूँ जोगण किण कांम री, चूड़ा खरच मिटंत।--वी.स.
  • उदा.--5..झूरै रे म्रिगनैणी झूलर, मेह तणी परि मोरां। जोगण पीठ दियां सहजादी, घूमरि, घूमरि ऊपरि धोरां।--अमरसिंह राठौड़ रौ गीत
2.ज्वार की फसल का एक रोग विशेष जिससे ज्वार के भुट्टों पर जटा के समान बाल वाला पदार्थ निकलता है और दानों के स्थान पर राख निकलती है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची