सं.पु.
सं.तर्प तृप्ति
`(प्रसन्नतां) राति ददाति तर्पर:, प्रा.टप्पर, टब्बर, टाबर) बालक, लड़का।
- उदा.--कूवौ व्है तौ डाक लूं, समंद न डाक्यौ जाय। टाबर व्है तौ राखलूं, जोबन (न) राख्यौ जाय।--लो.गी.
- मुहावरा--1.टाबर रुळणा--बच्चों का अनाथ होना.
- मुहावरा--2.टाबर रौ आंख में घाल्यौ ही नहीं खटकणौ (रड़कणौ)--सयाना बालक जिसका आचरण किसी को नहीं अखरे।
- कहावत--1.टाबरां घर बसतौ व्है तौ बाबौ बूढ़ी क्यूं लावै--मां के न होने पर घर का कार्य-भार यदि बालक सम्भाल ले तो पिता को दूसरी पत्नी लाने की क्या आवश्यकता होती अर्थात् यदि नौसिखियों से काम चलता होता तो अनुभवी लोगों को कौन पूछता.
- कहावत--2.टाबरां री टोळी बुरी, घर में नार बोळी बुरी--घर में बहुत ज्यादा सन्तान होना ठीक नहीं, इसी प्रकार घर में बधिर स्त्री का होना भी अच्छा नहीं होता है।
यौ.
टाबर-छोरू, टाबर-टींगर, टाबर-टीकर, टाबर-टूबर, टाबर-टोळी, टाबर-दार, टाबरीदार।