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टाबर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.तर्प तृप्ति
`(प्रसन्नतां) राति ददाति तर्पर:, प्रा.टप्पर, टब्बर, टाबर) बालक, लड़का।
  • उदा.--कूवौ व्है तौ डाक लूं, समंद न डाक्यौ जाय। टाबर व्है तौ राखलूं, जोबन (न) राख्यौ जाय।--लो.गी.
  • मुहावरा--1.टाबर रुळणा--बच्चों का अनाथ होना.
  • मुहावरा--2.टाबर रौ आंख में घाल्यौ ही नहीं खटकणौ (रड़कणौ)--सयाना बालक जिसका आचरण किसी को नहीं अखरे।
  • कहावत--1.टाबरां घर बसतौ व्है तौ बाबौ बूढ़ी क्यूं लावै--मां के न होने पर घर का कार्य-भार यदि बालक सम्भाल ले तो पिता को दूसरी पत्नी लाने की क्या आवश्यकता होती अर्थात्‌ यदि नौसिखियों से काम चलता होता तो अनुभवी लोगों को कौन पूछता.
  • कहावत--2.टाबरां री टोळी बुरी, घर में नार बोळी बुरी--घर में बहुत ज्यादा सन्तान होना ठीक नहीं, इसी प्रकार घर में बधिर स्त्री का होना भी अच्छा नहीं होता है।
यौ.
टाबर-छोरू, टाबर-टींगर, टाबर-टीकर, टाबर-टूबर, टाबर-टोळी, टाबर-दार, टाबरीदार।
अल्पा.
टाबरियौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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