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टेक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.हठ, जिद्द।
  • उदा.--1..सो सुणतां ही भावी रै प्रमांण बारुणी रै वसीभूत हुवै समुद्रसिंघ विपरीत व्यवहार वतावण री टेक गही।--वं.भा.
  • उदा.--2..आखू न कही मांनी न एक, कोप्यौ नवाब नहिं तजी टेक।--ला.रा.
  • मुहावरा--टेक झेलणी, टेक पकड़णी--हठ पकड़ना, जिद्द पर अड़ा रहना।
2.प्रण, प्रतिज्ञा।
  • उदा.--1..आहुई वडौ राठौड़ विसरांमियां, तज गया दूसरा न सायत टेक। हसत नित वरीसण नकौ इळ रायहर, हसत बंध कवि नहीं जग मैं हेक।--द्वारकादास दधवाड़ियौ
  • उदा.--2..इण विध चिहुंवै टेक उतारूं। असुर विलंद तदि जीव उबारूं।--सू.प्र.
  • उदा.--3..अकबर जिसा अनेक, आहव अड़ अनेक अरि। असली तजै न एक, पकड़ी टेक प्रतापसी।--दुरसौ आढ़ौ
  • मुहावरा--टेक निभाणी--संकल्प से नहीं टलना, प्रण के अनुसार कार्य करना, प्रतिज्ञा पूरी करना।
3.मान, प्रतिष्ठा।
  • उदा.--कोई वीर पुरख नींद में सूतौ हौ--इतरै दुसमण ऊपर आय गया तिकां नै वीर री स्त्री कहै छै।--रे नींद में सूतौ देख इण आपरी टेक आंन रा निभावण वाळा नै थे मत छेड़ौ, पुळ जावौ।--वीर सतसई की टीका
  • उदा.--2..आपणे आपणे भेख की, सब कोई राखै टेक। निगम निसांणौ एक है, गोळंदाज अनेक।--संतवांणी
  • उदा.--3..जगपति कुंण थारी गति जांणै, अकळि तुहारी एक अनेक। जुध बाहिरौ जगत सहि जीतौ, तूं राखै भगतां री टेक।--पी.ग्रं.
  • मुहावरा--1.टेक रै'णी--बात निभ जाना, इज्जत रह जाना.
  • मुहावरा--2.टेक राखणी--बात को निभा लेना, लज्जा रख लेना।
5.गीत की वह प्रारम्भिक पंक्ति जो बार-बार गाई जाती है, पद या टुकड़ा, स्थायी.
6.आश्रय, अवलम्ब।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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