सं.स्त्री.यौ.
वह रात्रि जिसमें तीर्थयात्रा से लौटने पर तीर्थ-यात्रा के उपलक्ष्य में हरिकीर्तन किया जाता है। वि.वि.--हरिद्वार, बद्रिकाश्रम आदि तीर्थ-स्थानों से लौटते समय यात्री उस स्थान का जल व एक लाठी अपने साथ लेकर आता है। अपने निवास-स्थान पर एक निश्चित रात्रि को कीर्तन करने वालों के साथ जागरण करता है। जल और लाठी को कीर्तन के बीच में रख देता है। सवेरे ब्राह्मणों व साधु-सन्तों को भोजन करा कर उस लाठी को दान के रूप में किसी साधु को दे देता है। क्रि.प्र.--जगावणी।