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डांगड़ी-रात  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.यौ.
वह रात्रि जिसमें तीर्थयात्रा से लौटने पर तीर्थ-यात्रा के उपलक्ष्य में हरिकीर्तन किया जाता है। वि.वि.--हरिद्वार, बद्रिकाश्रम आदि तीर्थ-स्थानों से लौटते समय यात्री उस स्थान का जल व एक लाठी अपने साथ लेकर आता है। अपने निवास-स्थान पर एक निश्चित रात्रि को कीर्तन करने वालों के साथ जागरण करता है। जल और लाठी को कीर्तन के बीच में रख देता है। सवेरे ब्राह्मणों व साधु-सन्तों को भोजन करा कर उस लाठी को दान के रूप में किसी साधु को दे देता है। क्रि.प्र.--जगावणी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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