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डाकण, डाकणि, डाकणी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.डाकिनी
1.वह स्त्री जिसकी दृष्टि आदि के प्रभाव से बच्चे मर जाते हैं, डायन।
  • उदा.--1..इणनै सहनता कहै--सो डाकी ठाकुर तौ सहनता कर रजपूतां रा माथा लेवै वा प्रांण लेवे नै डाकण दीठ चलाय निजर सूं प्राण लै।--वीर सतसई की टीका
  • उदा.--2..साकणि डाकणि सकति, सकती चवसठी समोसरी।--सू.प्र.
  • उदा.--3..सबद विचारि सहज धरि खेलै, नांव निरंतरि जागै। मनसा डाकणि मारंती मारै, तौ नगरी चोर न लागै।--ह.पु.वा.
  • मुहावरा--1.डाकण नै किसौ माळवौ भाँ (दूर) है--डायन के लिये मालवा कोई दूर नहीं है अर्थात्‌ समर्थ और प्रबल के लिए कोई कार्य मुश्किल नहीं होता है।
  • मुहावरा--2.डाकण नै मासी कै'र बतळावणी--डायन से मौसी कह कर बात करनी चाहिए अर्थात्‌ दुष्ट को सम्मान अथवा प्रेम-व्यवहार से प्रसन्न रखना चाहिए। दुष्ट से लाभ के स्थान पर हानि ही होती है।
  • कहावत--डाकण्यां रै ब्याव में नौतियार रौ गटकौ--डाइनें अपने यहाँ आमंत्रित व्यक्तियों पर ही प्रतिघात करती हैं। दुष्ट व्यक्ति स्वजनों को ही हानि पहुँचाता है।
2.प्रेतनी, राक्षसी, चुड़ैल।
  • उदा.--वीरे डाक वाया। विमांणै वोम छाया। साकणी डाकणी मिळि मंगळ गाया।--वचनिका
रू.भे.
डंकिनि, डाइण, डाइणि, डाइणी, डाइन, डक्कण, डक्कणी, डागणी, डायण, डायणि, डायणी, डायनि, डायनी।
पर्याय.--आखरढ़ायी आखणी, जरख-बाहणी, डाकण, डाकणी, डायण, डायणी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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