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ढोर
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.धुर्य
पशु, मवेशी।
उदा.--
किसी'क कुटेम ही। ठौड़-ठौड़
ढोर
इतरा मर्या हा के गांवां रै बारै हाडकां रा ढिग लाग्योड़ा हा।--रातवासौ
उदा.--
कहै दास सगरांम मिनख तू दीखै चोखौ। कदेक तौ कह रांम रात दिन होकौ होकौ। होकौ होकौ रात दिन, अकल बिहूणा
ढोर
। आवै है नैड़ी अवध, पड़सी नरक अघोर। पडसी नरक अघोर म्हनै यौ मारै धोकौ। कहै दास सगरांम मिनख तूं दीखै चोखौ।--सगरांमदास
रू.भे.
ढोरु, ढोरू।
वि.
मूर्ख, गँवार।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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