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तउं, तउ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
अव्यय
सं.तत:, प्रा तओ, अप.तउ
पाद-पूरक अव्यय, तो।
  • उदा.--वायस वीजउ नांम, ते आगळि लल्लउ ठवइ। जइ तूं हुई सुजांण, तउ तू वहिलउ मोकळै।--ढो.मा.
1.तो।
  • उदा.--जउ तंइ रे देव दीधी हुंती पांखड़ी, तउ हूं ऊडी प्रभु जांत पासै।--स.कु.
2.तो भी।
  • उदा.--जइ सूकी तउ वउलसिरी, त्रूटी तउ मोतीसरी।--व.स.
3.यदि.
4.तब।
  • उदा.--राउ पहतउ सरगलोकि गंगेय कुमारि। तउ लधु बंधवु ठविउ पाटि तिणि वयण विचारि।--पं.पं.च.वि.
  • उदा.--1..मइं ओळखी तउं हव अंगु साति। भाजउं जिसिइं कौरव सैन्य वाति।--विराट पर्व
  • उदा.--2..पदक प्रियुतउ हूं मोतिन माळा। हीरउ तउ हूं मूंदरड़ी रे बहिनी।--स.कु.
क्रि.वि.--
(सं.त्रीणि) तीन (जैन) सर्व.(सं.त्वम्‌) तूं, तुम, आप।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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