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तट  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.किनारा, कूल, तीर।
  • उदा.--ज्यां थारै तट जाय, उदर भर पीधौ उदक। मिनख जिकै फिर माय, आया नह जननी उदर।--बां.दा.
2.सीमा, हद।
  • उदा.--ह्वै करत कूक हजार, पड़ि ठौड़ ठौड़ पुकार। दळ दहल ऊजड़ि देस, चढ़ि तटां लोक चलेस।--सू.प्र.
3.महादेव (अ.मा.) क्रि.वि.--
1.पास, निकट, समीप।
  • उदा.--कट तट ओप निखंग कोट छिब कांम की। रूप अनूप सचूप यसी दुति रांम की।--र.ज.प्र.
2.नीचे।
रू.भे.
तट्ट, तड।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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