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तरणि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.तरणि:
1.सूर्य।
  • उदा.--तुलि बैठौ तरणि तेज तम तुलिया, भूप कणय तुलता भू भाति। दिणि दिणि तिणि लघुता प्रांमै दिन, राति राति तिणि गौरव राति।--वेलि.
2.आक, मदार.
3.किरण। सं.स्त्री.--
4.नौका, नाव।
  • उदा.--तौ पै धूळि सिल तरगी वारी सारै हि....। ऊं ही राघौ तरणि उडै छै य्यौ साकौ स कुळ छुडै।--र.ज.प्र.
5.स्त्री, तरुणी।
  • उदा.--त्रिण फेरा लीधा तरणि, आगी करि रघुनाथ।--रा.रा.
रू.भे.
तरणी, तरांणि।
(सं.तरुणी)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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