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व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.तर्ष, तृषा
प्यास, तृषा।
उदा.--
मांणस कही अमल आरोगस्यौ, तद कही
तिस
लागी छै पांणी हुवै तौ पावौ।--मारवाड़ रा अमरावां री वारता
उदा.--
सहर की तारीफ कूण कर सकै। अमरावती के अमर
तिस
गहर कूं तकै।--र.रू.
सर्व.
उस।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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