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त्रास
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.त्रास:
1.डर, भय।
उदा.--
कोड़ां पापां कीजतां, कोपै धू कीनास। जीहां राघौ जौ तपै, तौ नांहि तिल
त्रास
।--र.ज.प्र.
2.पीड़ा., कष्ट, वेदना।
उदा.--
मुनि सुणि
त्रास
धरम महिपत्ती। कीधौ विदा कुंवर कांमत्ती।--सू.प्र.
3.(सं.तृषा) प्यास।
रू.भे.
त्रासा।
क्रि.प्र.--दैणी, होणी।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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