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थर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.स्तर
1.खड़ी चुनाई में दो भागों को जोड़ने के लिये बीच में लगाया जाने वाला पदार्थ जिससे ऊपर का भाग स्थिर हो सके, परत, तह।
  • उदा.--सिद्धराव कारीगर नूं पूछियौ, अै वींटी कांसूं तरै। कारीगर कह्यौ 'अै वीच थर हुसी' तरै राजा रै जमै--खातरी हुई।--नैणसी
2.दूध अथवा पकाये हुए गर्म लेह पदार्थ के ठंडा होने पर उसके ऊपर जमने वाली तह, परत।
  • उदा.--प्राव्रट प्राव्रट री आवट मन मारै, थर नै पापां रा थर लेग्या लारै।--ऊ.का.
3.बाघ अथवा शेर की मांद, गुफा। सं.पु.--
4.स्थान, जगह (जैन)।
5.ढेर, समूह, राशि।
  • उदा.--प्राव्रट प्राव्रट री आवट मन मारै। थर नै पापां रा थर लेग्या लारै।--ऊ.का.
6.कंपायमान होने की क्रिया या भाव।
  • उदा.--बायू आयू हर बिबरण बहरावै। थर थर थरकत थिर थिरचर थहरावै--ऊ.का.
रू.भे.
थरकण, थरकन।
यौ.
थरत्थर, थरथर।
अल्पा.
थरकी।
7.देखो 'थिर' (रू.भे.)
  • उदा.--'माल' दलीस तणी घड़ मोड़ै, लोड़ै जण बावन गढ़ लीध। 'ऊदै 'संग' उर साह अमावै, कमधज वेद पंथ थर कीध।--महाराजा मानसिंह रौ गीत
(सं.स्थल)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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