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थरु, थरू  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.स्थिर
अटल, स्थिर।
  • उदा.--1..जिण राघव जापियौ, थरु घर नव निध थावत।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..चढ़ै सिंह चंडी मधूकीट खंडी। खळं ओक खप्पी थरू दास थप्पी।--केहर प्रकास
  • उदा.--3..जिण मुख जोवतां दुख प्राचत जावै। थरू आथ घर नव निध थावै।--र.ज.प्र.
  • उदा.--4..सह तरा रूप कळ विरछ अखै सकळ, थरु दुत मेर सिखरां आथाघौ।--र.ज.प्र.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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