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थावर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.स्थावर
1.जो चलता-फिरता न हो, स्थावर (जीव)
  • उदा.--1..नहीं तू बाळ न ब्रद्ध न मूळ। नहीं तू थावर सुक्खम थूळ।--ह.र.
  • उदा.--2..राजकंवार नीमरांणा की बांधरवाड़ै ब्याई। परतख होय पांगळी पांवां, थावर संग्या थाई।--मे.म.
  • उदा.--3..पांच थावर नै त्रिणि विकलेंद्रि।--ध.व.ग्रं.
2.अचल, स्थिर,
3.मूर्ख, नासमझ,
4.पागल।
  • उदा.--सिंधुरबर बावर भूंडण कर सांधै। वांमा बीजळ नै थावर गळ बांधै।--ऊ.का.
5.ढीठ, निर्लज्ज। सं.पु.--
1.पर्वत,
2.धनुष की डोरी, प्रत्यंचा,
3.शनिवार।
अल्पा.
थावरियौ।
4.शनिश्चर ग्रह।
  • उदा.--लालच री दौड़ लहर, भवन बियां धन भाळ। बैठौ थावर बारमौ, कांधै आंण कराळ।--बां.दा.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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