सं.स्त्री.
सं.दशा
1.अवस्था, स्थिति, हालत।
- उदा.--मोटी माफी मांग अमलदारां सूं अड़स्यां। देस सुधारण दसा लाख विध थांसूं लहस्यां।--ऊ.का.
2.मनुष्य के जीवन की अवस्था। वि.वि.--ये दस मानी गई हैं--गर्भवास, जन्म, बाल्य, कौमार, पौगंड, यौवन, स्वाविर्य, जरा, प्राणरोध और नाश। मतान्तर से ये छ: भी मानी जाती है--शैशव, कौमार, कैशोर, यौवन, वार्धक्य और अंतिम। अंतिम को राजस्थानी में छठी भी कहते हैं।
3.विरही की अवस्था जो साहित्य के अन्तर्गत मानी जाती है, ये दस प्रकार की होती हैं--
4.दीपक की बत्ती। (मि.दसा-सुत)
7.मनुष्य के जीवन में फलित ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक ग्रह का नियत भोग काल। वि.वि.--दशा दो प्रकार से निकालते हैं, पहले के अनुसार मनुष्य की आयु को 120 वर्ष की मान कर जिससे निर्धारित दशा विंशोत्तरी कहलाती है तथा दूसरे के अनुसार मनुष्य की आयु को 108 वर्ष की मान कर जिससे निर्धारित दशा अष्टोत्तरी कहलाती है। पूरी आयु के समय में प्रत्येक ग्रह के भोग के लिये वर्षों की संख्या अलग-अलग नियत है जैसे अष्टोत्तरी रीति के अनुसार सूर्य्य की दशा 6 वर्ष, चंद्रमा की 15 वर्ष, मंगल की 8 वर्ष, बुध की 17 वर्ष, शनि की 10 वर्ष, बृहस्पति की 19 वर्ष, राह की 12 वर्ष और शुक्र की 21 वर्ष मानी गई है। जन्म लेते ही कौनसी दशा शुरू होती है यह जन्मकाल के नक्षत्र के अनुसार जाना जाता है।