सं.पु.
फा.दाग, सं.दग्ध
1.पशुओं के शरीर पूर पहिचान हेतु अग्नि दग्ध क्रिया द्वारा बनाया हुआ निशान विशेष। क्रि.प्र.--दैणौ, लगाणौ। (फा.दाग़)
2.रंग का वह भेद जो किसी वस्तु के तल पर अलग दिखाई पड़े, चित्ती, धब्बा। क्रि.प्र.--पड़णौ, लागणौ।
4.कलंक, दोष, लांछन।
- उदा.--1..देरांणी कुळ ऊपजी, दोही पख विण दाग। की मुख ल्होड़ी सौक रौ, थारौ लियण सुहाग।--वी.स.
- उदा.--2..दूजां ज्यूं भागौ नहीं, दाग न लागौ देस। वागां खागां वंकड़ौ, मह बांकौ 'माहेस'।--महेसदास कूंपावत रौ दूहौ
5.पाप, अध।
- उदा.--राखै धेख न राग, भाखै न जीहा बुरौ। दरसण करतां दाग, मिटै जनम रा मोतिया।--रायसिंह सांदू
6.अग्नि।
- उदा.--एक फिरत आतुर अमित, विद्युत सम चित वाग। उचकै पग पूगै अवनि जांणिक लग्गै दाग।--रा.रू.
7.जलन।
- उदा.--कसंता बिजै मंड कोदंड कंधां, बणावै ब्रिथा बर रै जेरबंधां। सटा याळ जाळी लटाळी सुहावै, प्रिया नागवाळी लखै दाग पावै।--वं.भा.
9.मुर्दा जलाने की क्रिया, मृतक का दाह--कर्म्म।
- उदा.--1..सो आदमी आठ तौ मर गया त्यांनूं खड़ा रहि दाग दिरायौ।--भाटी सुंदरदास बीकूंपुरी री वारता
- उदा.--2..सो पांच हजार डोळी ऊठी बाकी खेत रहियां नूं दाग दिरायौ, देहली आया।--गौड़ गोपाळदास री वारता
- मुहावरा--दाग दैणौ--मुरदे का क्रियाकर्म करना, मृतक का दाह--संस्कार करना।
क्रि.प्र.--छूटणौ, मिटणौ। (सं.दाघ:)