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दार  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.दारा:
1.पत्नी, भार्य्या।
  • उदा.--1..जठै तौ बडाबडा अमीरां रा आपांण प्रहार पहली ही पड़ता देखि राठौड़ राजा जसवंतसिंह रांणावत राजा रायसिंह प्रमुख किता ही आर्‌य जवनां रा ओघ 'दारा' रौ साथ छोडि दारा रौ साथ करण आप आप रै आगार चालिया।--वं.भा.
  • उदा.--2..दिन रात दार कारा करै, बहै कळेजा बीच रे। जो पै'ला हूं जांणतौ, तौ नैड़ौ न जातौ नीच रै।--ऊ.का.
2.स्त्री, औरत।
  • उदा.--दार तैं कु दार पैर पोच में दियौ। कार कौं बिगार सोच लार सै कियौ।--ऊ.का.
3.काष्ठ, लकड़ी।
  • उदा.--1..पांण जोड़ै हुकुम पावै; अतुर वारैं भरथ आवै। ले चले हित लेख। चिता धर समसांण चाहै, दार चंदण बीच दाहै। विधा हूंत विसेख।--र.रू.
  • उदा.--2..सांमंत विछोहै अंग सार, दोय जेम करै करवत्त दार।पड़ सीस विनां लौटै पठांण, किर ज्वार सिटै ढूका क्रसांण।--ला.रा.
4.अग्नि, आग (अ.मा.)
5.दरार। प्रत्य.(फा.) वाला।
  • उदा.--सूळीदार सुभाव, त्रिसुळदार तैयारी। मरजदार होय मांग, आंणी कहुं दार उधारी। जमींदार हुय जमीं करजदारी में कळगी। ईजतदारा अंधार गरजदारी में गळगी। छळदार होय छाती छडै, अमलदार मुरदार री। और तौ दार सब आ मिळै, कमी एक कळदार री।--ऊ.का.
(सं.दारु)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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