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दीपक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.दीपक:
1.चिराग, दीया, दीप।
  • उदा.--1..करै कमाई कोय, दीपक ज्यूं सांमी दियै। जीमण सीरा जोय, मुलमुल पैरण मोतिया।--रायसिंह सांदू
  • उदा.--2..जड़ियौ तिलक जवाहरां, जांणै दीपक जोत। बालम चीत पतंग बिधि, हिंत सूं आसक होत।--बां.दा.
रू.भे.
दिपह, दीपक्क, दीपग, दीबक, दीवक।
अल्पा.
दिऔ, दियौ, दिवलौ, दीऔ, दीपक्कौ, दीयौ, दीवटिउ, दीवटिऔ, दीवटियउ, दीवटियौ, दीवटीउ, दीवटीऔ, दीवटीयउ, दीवटीयौ, दीवटौ, दीवडलौ, दीवडु, दीवडू, दीवडौ, दीवलउ, दीवलियौ, दीवलौ, दीवी, दीवौ।
2.पीला* (डिं.को.)
3.एक अलंकार विशेष जिसमें उपमेय और उपमान की एक ही धर्मवाची क्रिया हो.
4.संगीत में छ: रागों में से एक राग जो हनुमत के मत से दूसरा है और इसके गाने का समय ग्रीष्म ऋतु का मध्याह्न है। इसका सरगम यह है--स र ग म प ध नी सा.
5.एक ताल का नाम (संगीत)
6.दश मात्राओं का एक मात्रिक छंद विशेष (र.ज.प्र.)
7.वेलिया सांणोर गीत के मिलते--जुलते लक्षणों का पांच चरण का एक गीत (छंद) विशेष जिसके पांचवें चरण में 15 मात्राएं होती हैं (र.ज.प्र.)
8.डिंगल के वेलिया सांणोर गीत का एक भेद विशेष जिसके प्रथम द्वाले में 60 लघु दो गुरु सहित 64 मात्राएं होती हैं तथा शेष के द्वालों में 60 लघु एक गुरु कुल 62 मात्राएं होती हैं (पिं.प्र.)
9.केसर (ह.नां.) वि.--
1.पाचन अग्नि को तेज करने वाला.
2.उजाला फैलाने वाला, दीप्तिकारक।
पर्याय.--उजासी, उतमदसा, उदोत, कजळअंक, कळधन, ग्रहमिण, ताईतिमर, ताईपतंग, दीप, दुत, नेहांनेह, प्रदीप, सारंग, सिखजनम, सिखाजोत।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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