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दुरलभ
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.दुर्लभ
1.जो कठिनता से मिल सके, दुष्प्राप्य।
उदा.--
सुज
दुरलभ
रखां बळ सिधां साधकां, जोगीराजां दुलभ जग। खाटण सुजस भेटियौ 'खूमै', नरां सुरां बच जकौ नग।--बां.दा.
2.दुर्लध्य, कठिन, मुश्किल।
उदा.--
तजन जतन सै करत है.ममता तजै न कोय। एक कनक औ कांमिनी,
दुरलभ
घाटी दोय।--सिंघासण बत्तीसी
3.बुरा, खराब।
उदा.--
लाखां लोकां रौ लाखां भर लीन्हौ।
दुरलभ
वेळा में चेळां भर दीन्हौ।--ऊ.का.
4.अनोखा.
5.प्रिय, प्यारा। विलो.--सुलभ। सं.पु.--दूल्हा।
उदा.--
नीराजन प्रमुख समस्त ही बिधांन करि अरबुद रै अधीस
दुरलभ
प्रिथ्वीराज नूं आपरै अंतहपुर आंणि बेद मंत्रां रा विधांन पूरवक अंगजा इच्छणी परिणाय दीधी।--वं.भा.
रू.भे.
दुलभ, दुल्लभ, दुल्लह।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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