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दुरस्त
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'दुरस' (रू.भे.)
उदा.--
1..जिका बात बणै तिण में पहिलां अभरोसौ विचारजे तौ अरथ
दुरस्त
दीसै।--नी.प्र.
उदा.--
2..तद कुंअर अरज करी--साख चरणे रेढ़ा जावै छै, हुकम जै हुवै रेढ़ा मार ल्यावां। गोठ रौ सवाद तौ रेढ़ा ही छै। तद रावजी फुरमायौ--
दुरस्त
बात छै, पण जाबतौ घणौ कर जायज्यौ।--डाढाळा सूर री बात
उदा.--
3..बादसाह कन्है सूं भिस्तिन घर गई और घर जाय भिस्ती सूं कही--आज बादसाह खाणा नहीं खावै था। पण हूँ कौल सोंस घणी तरह सूं कर खिला आई हूं। बार--बार बादसाह तुम से अरज करणे कहता है सो तुम्हारा अरज करणे में क्या बिगड़ता? तौ भिस्ती--बात तौ
दुरस्त
कही, पण बादसाह बादसाह की जांणै सो जांणै क्या फुरमावै।--सांई री पलक में खलक
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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