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दोपहर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.द्वि+प्रहर
सूर्योदय व सूर्यास्त के मध्य का समय, मध्याह्न।
  • उदा.--म्हे दोपहरां पहले थां कन्है आवस्यां यूं कहि बहिर हुवौ।--कुंवरसी सांखला री वारता
रू.भे.
दुपहर, दुपहरी, दुपार, दुपेरी, दुपैरी, दोपहरी, दोपार, दोपारी, दोपाहर, दोपैर, दोफार, दोफारी, दौफारी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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