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द्रोह  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.प्रतिहिंसा का भाव, वैर।
  • उदा.--1..घणौ द्रोह कीधौ प्रहळाद घाती। रयौ त्रास देतौ जिकौ दीहराती।--भगतमाळ
  • उदा.--2..गोत्र द्रोह थी जस नहीं, न्रिप द्रोह नीति विणास। बाळ द्रोह थी गति नहीं, त्रिण्है कर्‌यां अभ्यास।--स्रीपाळ रास
2.ईर्ष्या, जलन, द्वेष।
  • उदा.--ढोला सांभळि माहरी वात, ऊमर खेलेस्यइ घणी घात। मारवणी सूं लागौ मोह, तुझ सूं घणी मांडिस्यइ द्रोह।--ढो.मा.
3.अहितचिंतन।
  • उदा.--बांदर कही--मित्र-द्रोह विस्वासघात की सूं होय, अर हूँ कितरै काळ जीऊं।--सिंघासण बत्तीसी
रू.भे.
द्रौह, धोह, ध्रोह।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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