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धन  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.धन--दौलत, द्रव्य।
  • उदा.--1..क्रिपण जतन धन रौ करै, कायर जीव जतन्न। सूर जतन उण रौ करै, जिण रौ खाधौ अन्न।--बां.दा.
  • उदा.--2..सदा करै सनमांन, मीठा बोलै हैस मिळै। दिए धरा धनदांन, जस खाटै ठाकुर जिकै।--बां.दा.
  • मुहावरा--धन उडाणौ--धन को तुरंत खर्च कर डालना।
यौ.
धन--धान्य।
2.लक्ष्मी।
यौ.
धन--तेरस।
3.सम्पत्ति, जमीन, जायदाद, आदि.
4.चौपायों का झुण्ड जो किसी के पास हो, गो--धन, पशु--धन।
  • उदा.--1..न्हावण पांणी और है, मिनखां पीवण और। धांमण धन नै दूसरौ, लूआं मुरधर जोर ।--लू
  • उदा.--2..नीपणां वित वाहर कोण नड़ै, चारणां धन खोस लियौ चवड़ै।--पा.प्र.
  • मुहावरा--1.धन पड़णी--देखो 'धन' भिळणी'.
  • मुहावरा--2.धन भिळणी--गाय, भैंस, बकरी आदि का गर्भवती होना।
यौ.
धन--वाळ।
5.गणित में जोड़ी जाने वाली संख्या या जोड़ का चिह्न.
6.मूलधन, पूँजी.
7.जन्म कुंडली में जन्म लग्न से दूसरा स्थान.
रू.भे.
धनउ, धनु।
8.देखो 'धनु' (2) (रू.भे.) (नां.मा.)
9.देखो 'धन्य' (रू.भे.)
  • उदा.--1..आजूणउ धन दीहड़उ, साहिब--कउ मुख दिट्ठ। माथा भार उळथ्थियउ, आंख्यां अमी पयट्ठ।--ढो.मा.
  • उदा.--2..निज सुख रुख सेव करावी नांही, दाखै धन धन जांबूदीप। चूंडाहरा उवारण चौजां, मौजां अै हिज 'मांन' महीप।--बां.दा.
  • उदा.--3..धन दीहाड़ौ, धन घड़ी, धन वार, धन मोहरत, धन वेळा, जकौ राज पधारिया।--कल्यांणसिंघ नगराजोत वाढेल री वात
  • उदा.--4..'भारा' तौ धन भाग, जाड़ेचा दाखै जगत। तीखौ खाग तियाग, 'जेहल' बेटौ जनमियौ।--बां.दा.
  • उदा.--5..पूरब भव तणइ करमसंयोगी, पांणिग्रहण इण परि हूउं ए। बोलइ मुनिवर हीराणंद धन नर, जीह वंछित फळू ए।--विद्याविलास पवाडउ
10.देखो 'धण' (रू.भे.)
  • उदा.--1..त्रीजै पहरै रैण कै, मिळिया तेहातेह। धन नहिं धरती हुइ रही, कंत सुहावौ मेह।--ढो.मा.
  • उदा.--2..प्रिय बोलावै धन रोवती जाई। सूनउ मंदिर मेल्हइ छै धाह। सा धन कुरळइ मोर ज्युं। पांच पडांसण बैठी छइ आय।--बी.दे.
11.देखो 'ध्वनि' (रू.भे.)
  • उदा.--धनंख तणइ धनकार करइ धन, विढ़वा भुव नीमिजइ जिवार। इकबीसै व्रहमंड अउइबइ, सहइ न वासंग भार--सहार।--महादेव पारवती री वेलि
रू.भे.
धन्न।
पर्याय.--अरथ, कसवर, गरथ, ग्रहमंडण, धरमंड, जळ, दिरव, द्युमण, द्रवण, धण, निध, निधांन, नूतनसुख, बित्त, मनरंजण, माया, माला, सद्रव, रिकथ, रिघ, रै, लखमी, वसू, विभव, वुसत, संपति, सव, सार, स्व, स्वापतेय, हरिन, हेम।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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