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धरण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
ग्रहण करने, रखने, थामने या संभालने की क्रिया, धारण। सं.पु.--
1.एक नाग का नाम। सं.स्त्री.(सं.धरणी)
2.नाभि के ठीक नीचे की वह नस जो अंगुली के दबाने से रह रह कर उछलती हुई सी मालूम पड़ती है।
3.एक तोल विशेष.
4.देखो 'धारण' (रू.भे.)
5.देखो 'धारणा' (रू.भे.)
  • उदा.--गोपाळौ सिवरांम रौ, साथै जोध सकज्जा। अै खीची ऊंची धरण, करण जतन कमधज्जा।--रा.रू.
6.देखो 'धरणी' (रू.भे.)
  • उदा.--तणी वधावण नेत बंध धरण सोढां तणी, तरण चंद--वदण कज वरण ताबू। अमर कथ करण प्रथमाद सिर ऊमदा, परणवा पधारै राव पाबू।--गिरवरदांन सांदू


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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