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धरणौ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.धरण
1.किस शक्तिशाली व्यक्ति द्वारा सताने पर अथवा ऋण दाता का ऋण निश्चित समय तक अदा न करने के कारण व्यक्ति विशेष अथवा समाज के समूह विशेष का इस निश्चय से अनशन करना कि उसकी प्रार्थना पूर्ण न होने पर आत्म--हत्या द्वारा प्राणों का त्यागना।
  • उदा.--पीछे उण हीज वरस प्रोहित मांन महेस रौ पटौ जबत हुवौ। वा बारठ चौथजी खूंडियै रौ पटौ पण जबत हुवौ। पीछै अै धरणा कर बीकानेर आया। आखर अवार डिंगळी रहै छै तठै जुहर कर सारा मुवा।--द.दा.
2.देव विशेष के स्थान पर अभीष्ट फल प्राप्ति हेतु अनशन कर बैठना।
  • उदा.--सोलंखी आपरै थांनक आय नै कुळ देवी रै धरणे बैठौ।--रा.वं.वि.
क्रि.प्र.--करणौ, दैणौ, धरणौ।

धरणौ, धरबौ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
क्रि.स.
सं.धरणम्‌
1.रूप ग्रहण करना, धारण करना, आरोपित करना।
  • उदा.--जिण दाहे वण हर धरइ, नदी खळक्कइ नीर। तिण दिन ठाकुर किम चलइ, धण किम बांधइ धीर।--ढो.मा.
2.व्यवहार के लिये हाथ में लेना, ग्रहण करना।
  • उदा.--1..पहिलउं सरसति अरचिसु, रचिसु वसंत विलासु। वीणि धरइ करि दाहिणि वाहणि हंसलउ जासुं।--व.वि.
  • उदा.--2..अवरु संखु धरइ रळियांमणउ। ध्वनि करी सिवपंथी सुहांमणउ।--जयसेखर सूरि
3.निश्चय करना, विचार ग्रहण करना।
  • उदा.--करइ दाहु विदाहु हियइ धरइ। कहु कीचक हुइ मरत मरइ।--विराट पर्व
4.प्रतीत करना, महसूस करना।
  • उदा.--1..इंद्र आउखउ आसनउं थाइ' कंठ तणी माळा कर माइ। धरइ कंप तै हिया मज्झरि 'पडि--सिउं दुक्ख तणइ भंडारि।--चिहुंगति चउपई
  • उदा.--2..चिंतइ चतुर स चिंततउ, धरतउ अरति अपार।--नेमिनाथ फागु
5.बैठाना, ग्रहण करना।
  • उदा.--आखई तौ पिता नहीं इैसर, पुणइ अनेरी तूझ परि। रमाडिउ न रंग भरि रांमा, धवराडियउ न गोद धरि।--महादेव पारवती री वेलि
6.स्मरण करना।
  • उदा.--करुणनिध जन हितकारी रे, बांमै अंग सीत बिहारी। सारी ज्यां बात सुधारी रे, धरियौ उर धांनखंधारी।--र.ज.प्र.
  • उदा.--2..नारदू पहुतउ सिख्या देवि पंडव बइठा ध्यांनु धरेवि। एकं पाइं दिणवर द्रेठि, होयडइ मंत्रु पंच परमेठि।--पं.पं.च.
7.पास में रखना, रक्षा में रखना।
  • उदा.--सिर नासा कांन दसन आंखै, नख गाल वपुस ना मल नाखै। मिळणौ लेखौ करइ मंतरणौ, विहचण अपणौ करि धन धरणौ।--ध.व.ग्रं.
8.स्वीकार करना।
  • उदा.--1..सखी भणइ 'सांमिणि हिव सुणउ एह दोस नवि कुणह तणउ, देविहिं कीधां छइ जे, कांम तेह मांजिवा धरइ कुण हांम।--विद्याविलास पवाडउ
  • उदा.--2..चउसट्ठि गाह तणौ चौसणौ, धरमी जन नै मन में धरणौ। बीजौ आउर पच्चक्खांण, चउरासी माथा परिमांण।--ध.व.ग्रं.
9.चौकन्ना होना, ध्यान करना।
  • उदा.--न दै साद काय नारियण, साद दियै जो संत। आपण नांम उलावतां, धेनु (ही) कांन धरंत।--ह.र.
10.संकल्प करना, दृढ़ निश्चय करना।
  • उदा.--ऊपनुं केवळ नांण सांमीय ए, नेमि जिणेसरहं ए। सांभळी सांमि वखांणु विरता ए सावयव्रतु धरंइ ए।--पं.पं.च.
  • उदा.--2..चारित्र भणीइ खडगह धारु, पुण्यवंत पालइं सविचारु। महाव्रत नउ न धरइं भार, बारव्रत नउ करउ अंगीकार।--चिहुंगति चउपई
11.शोभार्थ अथवा रक्षार्थ धारण करना, देह पर रखना, पहनना। ज्यूं--माथा माथै पोतियौ धरणौ।
  • उदा.--गुरु ऊठाडई अरजुनु कुमरौ करणिहि सरिसउं माडइ वयरौ। बे भाथा बिहुं खवै वहेई करियळि विसमु धणुहु धरेई।--पं.पं.च.
12.स्थापित करना, स्थित करना, ठहराना।
  • उदा.--धैधींगर कदम आवळा धरतौ, झड़ वरसात जेम मद झरतौ।--र.ज.प्र.
13.प्रकट करना, रखना।
  • उदा.--बेटा रहिं इकु मांनइ जाग, माथइ फाड देई इकि मागइं भाग। बेटा पाखइ इक दोहिलउं धरइं, बेटे छते इकि वढ़ी दढ़ी मरइं।--चिंहुगति चउपई
14.संलग्न होना, तत्पर होना, कियाशील होना।
  • उदा.--अनेकि परि जे पूजा करइं, मुगति जावा नी सजाई धरइं। रास भास सांमि गुण गायंति, पंचमगति निस्चइं पांमति।--चिहुंगति चउपई
15.रखेली रखना.
16.वहन करना, उत्तरपायित्व लेना।
  • उदा.--एक दिवस ते च्यारि नंदन, रमलि करंता रंगि। बापि बोलाव्या 'कहउ किम, मझ धरि भार धरेसिउ अंगि।--विद्याविलास पवाडउ
17.धारण करना, ग्रहण करना (गर्भ, हर्ष, शोक, उत्साह आदि)
  • उदा.--1..बीजी मद्रकि मद्र धूय पंडु तणइ घर नारि। गभु धरीऊ गभु धरीऊ देवि गंधारि।--पं.पं.च.
  • उदा.--2..कांमालय अट्ठमी तणी सांझइं संहट भणेवि। राजकुंअरि नीय घरि गई ऊलट अंगि धरेवि।--विद्याविलास पवाडउ
  • उदा.--3..इसिउ जि मूरख जांणी तेउ। नयणि न जोइ नेह धरेउ।--विद्याविलास पवाडउ
  • उदा.--4..राय आएसइं साहण समहर, सयल सुहड मेल्हेवि। भणी उजेणी दीधउं पीयांणउं, महितउ मांनि धरेवि।--विद्याविलास पवाडउ
  • उदा.--5..उजेणी नयणी तणी वर नारी, ए रंग धरेवि ऊलट आवइं आपणि भणि मोति ए थाळ भरेवि।--विद्याविलास पवाडउ
18.गिरवी रखना, बंधक रखना.
19.किसी वस्तु को मजबूती से पकड़ना या जोर से स्पर्श करना जिससे वह इधर--उधर नहीं जा सके या हिल सके, थामना, पकड़ना।
  • उदा.--1..केसि धरी नइ तांणीउं, दुसासणि दुरचारि। बाळप्पणि हुं नवि मूई, कांइ हुई तुम्ह नारि।--पं.पं.च.
  • उदा.--2..हारीय ए द्रुपदह धीयं ऊदाळिय सवि आभरण ए। तांणीय ए केसि धरेवि देवि दुसासणि दूजणिहिं ए।--पं.पं.च.
  • मुहावरा--धर दबाणौ या धर दबोचणौ--किसी पर इस प्रकार आ पड़ना कि वह विरोध या बचाव न कर सके, बलपूर्वक अधिकार में करना। वाद--विवाद में परास्त करना।
20.कहना, डींग मारना। ज्यूं--आ तौ गप्पां धरै है।
21.प्रहार करना, मारना। ज्यूं--एक इज मुक्कै री धरी, कै नीचौ पड़ियौ।
  • उदा.--झूंटि धरी धूंबड घाइ ताडइ। आक्रंदती द्रूपदि बूंब पाडइ।--विराट पर्व
22.वश में करना, अधिकार में करना, काबू करना, रोकना।
  • उदा.--मन देवता कुणहइं धरी न सकीइं, क्षणि जाइ सागरि, क्षणि जाइ आगरि।--व.स.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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