सं.स्त्री.
सं.
1.किसी काटने वाले शस्त्र या हथियार का वह तेज सिरा या किनारा जिससे किसी वस्तु को काटा जा सकता है।
- उदा.--1..मरणौ लाजम मांमलै, धार अणी चड धाप। पड़णौ सांकळ पींजरै, सिंहां वडौ सराप।--बां.दा.
- उदा.--2..पिंड फूटै छूटै रुधर पूर। सिर तूटै जूटै केक सूर। धड़ डोलै खाथा तेग धार। माथा मुख बोलै मार मार।--विड़द सिंणगार
- मुहावरा--1.धार चढाणी (दैणी)--शषत्र को पैना करना.
- मुहावरा--2.धार बंधणी--मंत्र आदि के बल से किसी हथियार की धार का निकम्मा हो जाना.
- मुहावरा--3.धार बांधणी--मंत्र आदि के बल से किसी काटने वाले हथियार की धार को निकम्मा कर देना।
2.तलवार।
- उदा.--1..धड़द्धड़ बेधड़ बज्जाहि धार, कड़क्कड़ आठकि काठ कुठार।--रा.रू.
- उदा.--2..कियौ विच मोगर खैंग गरक्क। जरद्दां वाजिय धार जरक्क।--रा.रू.
- मुहावरा--धार लागणौ (उतरणौ)--तलवार के घाट उतरना, मारा जाना।
3.पृथ्वी, इला (डिं.नां., मा.).
6.द्रव पदार्थ की वह गति--परंपरा जो किसी आधार से लगी हुई हो अथवा निराधार हो, द्रव पदार्थ के गिरने अथवा बहने का तार, अखण्ड प्रवाह।
- उदा.--1..धर गंगाजळ धार, आंणी तप कर ऊजळौ। ओ मोटौ उपगार, भागीरथ कीधौ भुयण।--बां.दा.
- उदा.--छट्टै प्रहरै दिवस कै, हुई ज जीमणवार। मन चावळ तन लापसी, नैण ज घी की धार।--ढो.मा.
- मुहावरा--1.धार टूटणी--किसी द्रव पदार्थ के अखण्ड प्रवाह का रुकना, कार्य में विक्षेप पड़ना.
- मुहावरा--2.धार देणी--किसी देवी, देवता या नदी आदि को द्रव पदार्थ चढ़ाना। जैसे--दूध, पवित्र जल, शराब आदि।
- मुहावरा--3.धार बंधणी--किसी द्रव पदार्थ का तार के रूप में गिरना। कार्य का लगातार होना.
- मुहावरा--4.धार मातै मारणौ (पेशाब)--किसी वस्तु को तुच्छ समझना अथवा अपने योग्य न समझ कर ग्रहण न करना।
7.प्रवाह, वेग।
- उदा.--कावेरी जळ स्रीकळस, धसियौ सनमुख धार। ऐरावत किर आवियौ, मंदायिणी मझार।--बां.दा.
8.देखो 'धारा' (रू.भे.) (नळ--दवदंती रास)