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धुरा  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
अंत, आखिर।
  • उदा.--1..बीजा सुर खपइ ऊपजइ बाझइ, धुरा लगइ अवचळ अवधूत। चाढ़इ ब्रह्म उणी चांचर री, बीजी चाढ़इ नहीं बभूत।--महादेव पारवती री वेलि
1.अंत में।
  • उदा.--पउढिया पांन प्रियाग तणइ प्रभु, कोळी यतरउ रूप कर। जुग केते ऐके जागविया, धुरा समाया ध्यांन धर।--महादेव पारवती री वेलि
2.प्रारम्भ आदि का।
  • मुहावरा--धुरा पेड सूं--शुरू से आखिर तक, आद्योपान्त।
क्रि.वि.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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