सं.पु.
सं.
1.उत्तर दिशा की ओर स्थित एक प्रसिद्ध तारा जो अपने स्थान पर अटल रहता है और सप्तर्षि तारे इसकी परिक्रमा करते हैं।
- उदा.--निरभय किय बीकांण नरेसुर। पुनि देसांण बसायौ निजपुर। ध्रवु जो लौं आकास धरत्ती। स्री करनी जय जयति सकत्ती।--मे.म.
2.पुराणानुसार राजा उत्तानपाद का पुत्र।
- उदा.--अबळा बाळक एक, अरज करूं ऊभी अठै। टाबर ध्रुव री टेक, तैं राखी वसुदेव तण।--रांमनाथ कवियौ
8.ज्योतिष शास्त्र के 27 योगों में से एक योग.
9.फलित ज्योतिष में एक नक्षत्रगण जिसमें उत्तरफल्गुनी, उत्तरा--षाढ़ा, उत्तर भाद्रपद और रोहिणी हैं.
11.टगण की छ: मात्राओं के ग्यारहवें भेद का नाम (।ऽ।।।)
12.भूगोल के अनुसार पृथ्वी का अक्ष स्थान। पृथ्वी के वे दोनों सिरे जिनसे होकर अक्ष रेखा गई हुई मानी जाती है। वि.वि.--उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव को राजस्थानी में 'उतरादू' व 'दिखणादू' कहते हैं।
14.छप्पय छंद का 53 वां भेद जिसमें 18 गुरु और 116 लघु से 134 वर्ण या 152 मात्राएं होती हैं। वि.--
1.प्रथम, पहले--पहल।
- उदा.--मुख हुती तिय मंदोदरी, ध्रुव सुजण अंतेवर घरी।--र.रू.
3.जो सदा एक ही अवस्था में रहे, नित्य.
रू.भे.
द्रु, धु, धुजी, धुर, धुरजी, धुव, धूअ, ध्रु, धू्र, ध्रूअ।