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नगर-सेठ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.यौ.
सं.नगर+श्रेष्ठिन्‌
1.नगर का सब से धनाढ़्‌य व्यक्ति.
2.एक पदवी जो राजाओं द्वारा अपने नगर या राज्य के किसी सेठ (वणिक) को दी जाती थी।
  • उदा.--नगर--सेठ घर चौधरी, कोड़ीधज के अन्न। मोटा पुंगळ देस मैं, नेमीसाह रतन्न।--पना वीरमदे री वात
रू.भे.
नग्र--सेठ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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