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नजर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
अ.नज़र
1.चितवन, दृष्टि, निगाह।
  • उदा.--दिल साजनां दुमेळ, नीच संग ओछी नजर। अति सबळां ऊखेल, पैलां घर वांछै पिसण।--बां.दा.
  • मुहावरा--1.नजर आणी (आणौ)--नजर आना, दृष्टिगोचर होना, दिखाई देना.
  • मुहावरा--2.नजर चढ़णी (चढ़णौ)--नजर पर चढ़ना, भला मालूम होना, पसन्द आ जाना, भा जाना। यकायक दिखलाई देना, दीख पड़ना.
  • मुहावरा--3.नजर पड़णी--देखने में आना, दिखाई देना.
  • मुहावरा--4.नजर फेंकणी--नजर फेंकना, सरसरी दृष्टि से देखना। दृष्टि डालना, दूर तक देखना.
  • मुहावरा--5.नजर बांधणी--किसी की दृष्टि में जादू या मंत्र आदि के जोर से भ्रम पैदा कर देना, कुछ का कुछ कर दिखाना।
2.आँख, नेत्र (डिं.को.)
3.किसी अच्छे पदार्थ, सुन्दर मनुष्य आदि पर पड़ कर उसे विकृत अथवा खराब कर देने वाला दृष्टि का कल्पित प्रभाव जिसे प्राचीन काल से अब तक बहुत से लोग मानते हैं, दृष्टि--दोष। ज्यूं.--छौ'रा नै बा'रै मती लिजा, नजर लाग जाई।
  • मुहावरा--1.नजर उतारणी--नजर उतारना। किसी मंत्र वा युक्ति से दृष्टि--दोष को हटाना.
  • मुहावरा--2.नजर लगाणी--बुरी दृष्टि का प्रभाव डालना, दृष्टि--दोष लगाना.
  • मुहावरा--3.नजर लागणी--बुरी दृष्टि का प्रभाव पड़ना, दृष्टि--दोष होना.
  • मुहावरा--4.नजर होणी--देखो 'नजर लागणी'।
4.मेहरबानी से देखने का भाव, कृपा--दृष्टि, शुभ--दृष्टि। ज्यूं.--म्हारै माथै बस आपरी नजर बणी रहै पछै म्हांनै कीं सोच कोयनी। क्रि.प्र.--रै'णी।
  • मुहावरा--नजर राखणी--मेहरबानी रखना, कृपादृष्टि रखना।
5.ख्याल, ध्यान। ज्यूं.--थांरी नजर में बाई रै सगपण सारूं कोई टाबर है कई?
  • मुहावरा--नजर में होणौ--जानकारी में होना।
6.देखरेख, निगरानी। ज्यूं.--म्हे तीरथां जावां हां, आप म्हारै घर माथै नजर राखजौ। क्रि.प्र.--राखणी।
7.पहचान, परख, शिनाख्त। ज्यूं.--विस्नोई घी लायौ है, सैंग कैवै चौखौ है अबै देखां आपरी नजर कैड़ी'क है। ज्यूं.--थे कहौ हौ कै रिपियौ खोटौ कोयनी, पण थांरै कैयां सूं कांई हूवै, म्हारी नजर में तौ रिपियौ साव खोटौ हौ, व़ळै चार भायां नै देखाय लौ। ज्यूं.--म्हारी नजर में औ आदमी ठीक नीं है। (अ.नज्र)
8.उपहार, भेंट।
  • उदा.--हासंग पेख महराज रंग। उड गयण बाज तुररा अळंग। भेजे सताब नजरां भुआळ। रवदाळ अतर जवहर रसाळ।--विड़द सिंणगार
9.राजा--महाराजाओें के समय में प्रचलित अधीनता सूचिक करने की एक रस्म विशेष जिसमें छेटे लोग और अधीनस्थ या प्रजा वर्ग राजा, महाराजाओं और जमीदारों आदि के सामने किसी विशिष्ट उत्सव, दरबार अथवा त्यौंहार के अवसर पर हथेली में नकद रुपया अथवा अशरफी रख कर लाते थे। इस धन को कभी तो छू कर छोड़ दिया जाता था और कभी ग्रहण कर लिया जाता था।
  • उदा.--बरखै रंग बिससे, ऊमरां ऊपरै। करै नजर कर जोड़, भड़ सूं फिर भूप रै। मिळ कोई माहोमाह दिवै रंग ढोलियां गोट सूं उडै गुलाब, तठै अणतोलियां।--सिवबक्स बारहठ
रू.भे.
नजरि, नज्र, निजर
क्रि.प्र.--करणी, झेलणी, दैणी, लैणी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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