HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

नित  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
अव्यय
सं.नित्य
1.सदा, सर्वदा, हमेशा।
  • उदा.--1..सोक री दस नित मिटावण सेवगां, गुण घणा थोक री ब्रवण गाडां। चाड त्रहुं लोक री निसुंभ सुंभ बाघ चड, डोकरी गहै खळ बिकट डाडां।--खेतसी बारहठ
  • उदा.--2..जब लग 'पातल' खग्ग झल, स्रिर कंधर उससंत। तो लौ पत दिल्ली तखत, चित नित रहौ निचिंत।--जैतदांन बारहठ
2.प्रतिदिन, रोज। ज्यूं--थे नित ओ कांई धंधौ छेड़ दौ? सं.पु.--
1.श्रीकृष्ण (अ.मा.)
2.देखो 'नित्य' (रू.भे.)
रू.भे.
नत, नत्त, निच्च, निच्चु, नित, निति, नितु, नित्त, नीत।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची