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निध
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
?
अटल।
उदा.--
बाळू धू बन जाय बैठौ, करण सेव-स कांम। देख अपणी ओट लीनौ, धणी अचळ धांम। तौ
निध
नांम जी निध नांम, जग में व्यापियौ निध नांम।--भगतमाळ
1.सन्तान।
उदा.--
जिण कुळ रौ खोटौ दिन व्है जद, निध जनमै निरताई नै। बाळापणौ जवांनी बोई, बोवण चहत बुढाई नै।--ऊ.का.
2.गाय, धेनु (अ.मा.)
3.देखो 'निधि' (रू.भे.)
उदा.--
1..हुवै वसीरौ वांणियौ, पातर हुवै खवास। हुवै किमियांगर ठग,
निध
हर जावै नास।--बां.दा.
उदा.--
2..ररौ ममु जुगम ऐ अंक बाकी रह्या, प्रसिध तिणसूं करै लिया प्यारा। जेण परभाव
निध
सिधादिक मो जुमै, सुर असुर नाग नर नमै सारा।--र.रू.
सं.पु.--
(मि.'नग' संख्या 4)
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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