सं.स्त्री.
सं.
1.कुबेर के नौ प्रकार के रत्न, यथा--पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वर्च्च।
4.धन, द्रव्य, सम्पत्ति।
- उदा.--1..जे निधि कहीं न पाइये, सो निधि घर--घर आहि। दादू महंगे मोल बिन, कोई न लेवै ताहि।--दादूबांणी
- उदा.--2..मन सुध एकाग्र चित करि, रुखमणी जी कौ जु मंगळ वेलि, तेनै पढ़ै तौ इतरा थौक होइ--निधि संपति होइ, सदा कुसळ होइ। इती बातां हुए।--वेलि.टी.
- उदा.--निधि गजराज तुरग नग, मेछ करी मनुहार। हित दीधौ राखी निजर, कीधौ विदा सवार।--रा.रू.
6.नौ की संख्या* (डिं.को.)
8.आघार, घर। ज्यूं--गुणनिधि, जळनिधि।
9.आर्यागीतिया खधांण (स्कंधक) का भेद विशेष (पिं.प्र.)
रू.भे.
नध, नधि, नधी, निद्ध, निद्धि, निध, निधी।