HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

निधि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.कुबेर के नौ प्रकार के रत्न, यथा--पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वर्च्च।
2.गड़ा हुआ द्रव्य।
3.खजाना।
4.धन, द्रव्य, सम्पत्ति।
  • उदा.--1..जे निधि कहीं न पाइये, सो निधि घर--घर आहि। दादू महंगे मोल बिन, कोई न लेवै ताहि।--दादूबांणी
  • उदा.--2..मन सुध एकाग्र चित करि, रुखमणी जी कौ जु मंगळ वेलि, तेनै पढ़ै तौ इतरा थौक होइ--निधि संपति होइ, सदा कुसळ होइ। इती बातां हुए।--वेलि.टी.
  • उदा.--निधि गजराज तुरग नग, मेछ करी मनुहार। हित दीधौ राखी निजर, कीधौ विदा सवार।--रा.रू.
5.लक्ष्मी।
6.नौ की संख्या* (डिं.को.)
7.समुद्र।
8.आघार, घर। ज्यूं--गुणनिधि, जळनिधि।
9.आर्यागीतिया खधांण (स्कंधक) का भेद विशेष (पिं.प्र.)
रू.भे.
नध, नधि, नधी, निद्ध, निद्धि, निध, निधी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची