सं.पु.
सं.
1.रहने की क्रिया या भाव।
- उदा.--1..उदैसिंघ लखधीर तण, रहियौ रांणै पास। बीजा साजा राठवड़, राजा पास निवास।--रा.ख.
- उदा.--गयांन लहर जहां थैं उठै, बांणी का परकास । अनुभव जहं थै ऊपजै, सब्दै किया निवास ।--दादूबांणी
2.रहने का स्थान।
- उदा.--1..जिणरी संगति रै प्रभाव सूं स्वरग लोक रौ मारग मुद्रित कराय कुंभी पाक रौ निवास भाळियौ।--वं.भा.
3.घर, आवास (ह.नां., अ.मा.)
4.उतनी उष्णता या ताप जिससे शरीर को शीत का अनुभव न हो, किञ्चित उष्णता। ज्यूं--अरे टाबर! सियां तौ को मरै ही नी? तद टाबर कही--अजै तौ रजाई ओडी हीज है थोड़ी देर सूं निवास आही जणां ठा' पड़ही।
5.आश्रय, सहारा। ज्यूं--बेटा! म्हारै बीजौ है कुंण? म्हारै एक थारौ ईज निवास है।
- उदा.--कहणै लागिया--स्यांमी, थारै पगां रै कासूं हुवौ? तद उण कही--बाबजी बाळिया छै महिना दोय मरतां नूं हुवा। जद इहां चाकरां कही--तूं गांव मांही हाल, तौ नूं उठै राखस्यां, खाणै नूं देस्यां, पाटा बांधस्यां, थारौ जापतौ जे करस्यां। सुण कर भूघर कही--गांव मांही तौ हूं कोई आऊं नहीं, म्हारै झाड़ै री मुसकिल, बीजौ तळाव पर पांणी रौ निवास छै, कोई नीम उतार दे, कोई हळद तेल आंण देवै, पाळ रै नीचं हूं झाड़ै फिर आऊं। सो अठै ही एक झोंपड़ी बांध देवौ तौ पड़ियौ रहूं, थांनूं असीस देऊं।--सूरै खींवै कांधळोत री वात
6.घड़े में रहने वाला जल (मि.कुंभ)
- उदा.--खीरपत नाथ प्रवत क्रपीठ निवास पथ तोय अथर तरतात, जाद निवास कबंध जप वसुधा धोख विख्यात।--अ.मा.
7.आराम, चैन।
- उदा.--आयौ भाद्राजण 'अभौ', पायौ प्रजा निवास। मिळिया जोध महाबळी चळचळिया मेवास।--रा.रू.
रू.भे.
नवास, निवास, निहिवास, न्यायास।
सं.स्त्री.
दक्षिण दिशा का एक नाम।