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नेग
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.णिर्जि शोच पोषणयौ:
1.सम्बन्धियों, आश्रितों तथा कार्य वा कृत्य में योग देने वाले लोगों को विवाह आदि शुभ अवसरों पर कुछ दिए जाने का नियम, देने, पाने का हक या दस्तूर।
उदा.--
तूटै कमळ बहै वळ तेगां, नेगी त्रपत करण रिण नेगां। पहिले धकै पांच सौ पड़िया, मुगळां प्रांण चकासे मुड़िया।--रा.रू.
मुहावरा--
नेग लागणौ--रीति के अनुसार कुछ देना, जरूरी होना, पुरस्कार देना, आवश्यक होना।
2.विवाह आदि शुभ अवसरों पर सम्बन्धियों, नौकरों, चाकरों तथा नाई बारी आदि काम करने वालों को उनकी प्रसन्नता के लिए दी जाने वाली वस्तु या धन, बंधा हुआ पुरस्कार, बख्शिश, इनाम।
उदा.--
पौळ-प्रवाह करै पग पूजन, बडा अवास छौळ द्रव बेग। सिंधुर सात दोय दस सांसण, नागद्रहै दीधा इण नेग।--बारूजी सौदौ
यौ.
नेग-दापौ।
रू.भे.
नेवग।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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