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नेवर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.नूपुर
1.स्त्रियों के पांवों में पहना जाने वाला एक आभूषण जो चूड़ी की तरह गोल होता है और भीतर से खोखला होता है।
  • उदा.--1..सीस फूल सिर ऊपर सोहै, बिंदली सोभा न्यारी। गळै गूजरी कर में कंकण, नेवर पहिरै भारी।--मीरां
  • उदा.--2..सह रांचै जन सादियां, मत बहरौ कर मांन। कीड़ी पग नेवर झणक, झणक सुणै भगवान।--र.ज.प्र.
  • उदा.--3..पछटत खग्ग राठौड़ पठांण। भयंकर कौतिग देखत भांण। रूणंझण नेवर हूवर रंभ। उठै हसि नारद होय अचंभ।--सू.प्र.
2.घोड़े के आगे वाले पांव की जांध और नली के मध्य के जोड़ पर पहनाया जाने वाला आभूषण विशेष जिससे घोड़े के चलने पर मधुर ध्वनि निकलती है।
  • उदा.--1..धर अंबर क्रम धोम, घटा डंबर रज घुम्मट। हाक वीर हैहींस, झूल नेवर झणणाहट।--सू.प्र.
  • उदा.--2..कीधा असि चाकरां, तुरत साकुरां तयारी। खुररां मांजी खेह, धजर तुररां सिर धारी। खणणाहट पाखरां, नाद झणणाहट नेवर। पट जेवर पहराय, किया सिणगार कलेवर।--मे.म.
  • उदा.--3..सब साज सजायर, चोट पटासिर, नेवर पायर बाज नखी। गजगाह दुतंगर भीड़ खतंगर, ओप उजाळ'र चोव रखी।--किसनजी दधवाड़ियौ
3.घोड़े के पाँव से दूसरे पाँव पर होने वाली रगड़ का घाव।
4.मनुष्यों के पांव की नली और तलुए के मध्य के जोड़ अर्थात गट्टे पर उस पाँव के दोनों टखनों में से भीतर की ओर रहने वाले टखने की उभरी हुई हड्डी।
रू.भे.
नेअर, नेउर, नेवुर।
अल्पा.
नेउरी, नेवरी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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