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पंड  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.पुिण्ड
1.आकाश, आसमान (ना.डिं.को.)
2.पवन। [सं.पुाण्डव]
3.अर्जुन।
  • उदा.--सू मध जेठ कळाधर सारी, आयौ रवि ज्यौं किरण अकारी। पंड कोपियौ किनां धार पण, वीरभद्र दिख ज्याग विधूंसण।--रा.रू.
4.देखो 'पांडु' (रू.भे.)
  • उदा.--पांचूं पूत पंड के पटकि बैठे हिम्मत कौ, चूकिगौ छमा कौ भवतव्य बस चेतो ई।--र.ज.प्र.
5.देखो 'पाँडव' (रू.भे.)
  • उदा.--'जिहंगीर' 'खुरम' जुडसी उभै, साखी चंद दुडिंद सुर। जोगणी-पीठ निहटा जवन, किर हथणापुर पंड-कुर।--गु.रू.बं.
6.देखो 'पिंड' (रू.भे.)
  • उदा.--1..पंड में घणौ प्यार, मिळतां मन हरखे मिळै। वे हैतू लखवार, मिळजौ दिन में 'मोतिया'।--रायसिंह सांदू
  • उदा.--2..महोदध पूछियौ कहौ मो सहस-मुख, 'जमन' की नवौ सणगार जुड़ियौ। 'भांण' रै लोह सुरतांण घड़ भेळियौ, चळोवळ पंड मो पूर चडियौ।--चतरौ मोतीसर


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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