सं.पु.
सं.पुिण्ड
1.आकाश, आसमान (ना.डिं.को.)
3.अर्जुन।
- उदा.--सू मध जेठ कळाधर सारी, आयौ रवि ज्यौं किरण अकारी। पंड कोपियौ किनां धार पण, वीरभद्र दिख ज्याग विधूंसण।--रा.रू.
4.देखो 'पांडु' (रू.भे.)
- उदा.--पांचूं पूत पंड के पटकि बैठे हिम्मत कौ, चूकिगौ छमा कौ भवतव्य बस चेतो ई।--र.ज.प्र.
5.देखो 'पाँडव' (रू.भे.)
- उदा.--'जिहंगीर' 'खुरम' जुडसी उभै, साखी चंद दुडिंद सुर। जोगणी-पीठ निहटा जवन, किर हथणापुर पंड-कुर।--गु.रू.बं.
6.देखो 'पिंड' (रू.भे.)
- उदा.--1..पंड में घणौ प्यार, मिळतां मन हरखे मिळै। वे हैतू लखवार, मिळजौ दिन में 'मोतिया'।--रायसिंह सांदू
- उदा.--2..महोदध पूछियौ कहौ मो सहस-मुख, 'जमन' की नवौ सणगार जुड़ियौ। 'भांण' रै लोह सुरतांण घड़ भेळियौ, चळोवळ पंड मो पूर चडियौ।--चतरौ मोतीसर