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पकड़  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.पुरकृष्ट, प्रा.पकड या पकड्‌ढ
1.पकड़ने की क्रिया या भाव, ग्रहण।
  • मुहावरा--पकड़ में आणौ--पकड़ा जाना, हाथ लगना, दाव में फसना या आना, घात में आना, मिलना, वश में होना।
2.पकड़ने का ढंग।
3.अशुद्धि, दोष आदि ढूंढ़ निकालने की क्रिया या भाव।
4.राग में आये स्वरों का एक ऐसा छोटा स्वर-समूह जो राग के पूरे रूप को प्रकट करता हो।
5.एक प्रकार की संडासी जिससे चीजें पकड़ी जाती हैं।
6.मस्तिष्क में बैठना, समझ में आना।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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