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पण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.पुरतिज्ञा, प्रा.पइण्ण
1.प्रतिज्ञा।
  • उदा.--औ धनुस बड़ौ विकराळ रघुवर छोटौ रे! कमळ जिसौ तन रांम रौ, औ धनुस बजर सम जांण, रघु! बडौ कठण पण पिता कियौ, कोइ रंच न कियौ विचार, रघु।--गी.रां.
यौ.
पणधर, पणधारी, पणबंद, पणबंध, पणमंड, पणवंत, पणहार, पणायारण, पणहारी। [सं.पुर्वन्‌ ग्रन्थि, जोड़]
2.आय के चार भागों में से एक। ज्यूं--बचपण, लड़कपण, चौथापण आदि। [सं.पुानीयम्‌]
3.पानी, जल।
यौ.
पणघट। क्रि.वि.[सं.पुनः अपि]
1.भी।
  • उदा.--ताहरां रांणौ कुंभौ मांडव रै पातसाह ऊपर आयौ। तद्‌ रिणमलजी पण हुतौ।--नैणसी
2.परन्तु।
  • उदा.--मुद्दै रावळ रै जीव प्रांण बीजा बेटा हता पण रायधण सूं बडौ प्यार, ए अठै राज करै।--रायधण री वारता
  • उदा.--2..सव्वे भला मासडा, पण वइ साहम तुल्ल। जे दवि दाधा रूंखडा, तीहं मातइ कुल्ल।--रा.सा.सं.
1.तो।
  • उदा.--गडवी 'गांगौ' गाविजै, स्यांम न मेल्है साथ ओढण अनिकारां नरां, हालां रा पण हाथ।--हा.झा.
2.तो भी। वि.[सं.पुच]--पंच, पांच।
यौ.
पणइंद्रिय। प्रत्यय--
1.प्रत्ययः जिसके लगने से नामवाचक या गुणवाचक संज्ञा भाववाचक बन जाती है। ज्यूं--गैलापण, छिछोरापण, टाबरपण, लड़कपण आदि।
रू.भे.
पणउ, पणि, पणी, पणू, पिंण, पिण, पिणि।
अव्य.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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