सं.पु.
सं.
1.सूर्य, सूरज।
- उदा.--उवे पहराव कनक अरघांणै। अरघण अरक गंगाजळ आंणै। पतंग अरघि न्रप सेर पधारै। धाय उठाय खड़ाऊ धारै।--सू.प्र.
4.खून।
- उदा.--लड़तां अंग लोह छछोह लगै। जगि जांणिक ज्वाळ अहूति जगै। अरणांग पतंग ज ई उफणै। वप स्रोवण घाव जड़ाव वणै।--सू.प्र.
5.लाल रंग।
- उदा.--कसीसत बांण जुबांण कबांण। बिहूं बळ छूटत फूटत बांण। अठै अंग नारंग छींछ अपार। फिरंगिय जांणि पतंग फुंहार।--सू.प्र.
6.हल्का रंग (अ.मा.)
- उदा.--7.दिये कपि डांण उडांण दमंग, पड़ै उर चोट मतंग पतंग।--सू.प्र.
- मुहावरा--पतंग-रंग--हल्का या अस्थायी स्नेह।
8.परदारकीड़ा, पतंगा।
- उदा.--1..दीप पतंग तणी परइ सुपियारा हो.एक पखौ म्हारौ नेह नेम सुपियारा हो।--स.कु.
- उदा.--2..जड़ियौ तिलक जवाहरां, जांणै दीपक जोत। बालम चीत पतंग विधि, हित सू आसक होत।--बां.दा.
11.कनकौआ, किनका, गुड्डी।
- उदा.--रमै वसंत राजंद, पतंग चरखा अप्पालां। केसर छौळ अबीर, गूंज डंबरां गुलालां।--सू.प्र.
13.एक झाड़ी विशेष जिसकी लकड़ी का रंग लाल होता है। (अमरत) (उ.र.)
14.एक प्रकार का वृक्ष विशेष।
15.डिंगल का वेलिया सांणोर छंद का भेद विशेष जिसके प्रथम द्वाले में 56 लघु 4 गुरु कुल 64 मात्राएं होती हैं तथा शेष द्वालों में 56 लघु 3 गुरु कुल 62 मात्राएं होती हैं (पिं.प्र.)।
रू.भे.
पतग, पतिंग, पतिग, पयंग, पातंग।
अल्पा.
पतंगड़ौ, पतंगियौ, पतंगौ, पतंग्गियौ।
क्रि.प्र.--उडाणौ, कटणौ, काटणौ, बढाणौ, लड़ाणौ।