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पद्य  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
1.जिसमें कविता के पद या चरण हों।
  • उदा.--तूं ही पिंगळा डिंगळा पद्य गद्या। तूं ही वैदिका लौकिका छंद विद्या।--मे.म.
2.पदचिह्नों से चिह्नित।
3.चरण सम्बन्धी।
4.पिंगल के अनुसार चार चरणों वाला नियमित मात्रा या वर्ण का छंद।
  • उदा.--गद्य-पद्य बे जगत में, जांण छंद की जात। सम पद पद्य सराहजै, छुटक द्य छ जात।--र.ज.प्र.
रू.भे.
पद। विलो.--गद्य।
क्रि.प्र.--कै'णौ, जोड़णौ, पढणौ, बणाणौ, रचणौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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