वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
अंत्यानुप्रास ढूंढें
परवाह
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
1.देखो 'प्रवाह' (रू.भे.)
उदा.--
1..'कांम-कंदळा' कही-कही, धडहड मूकइ धाह। पूरि चढ़ियां पांणी वहइ, लोअण ना
परवाह
।--मा.कां.प्र.
उदा.--
2..धरूं विसन रौ ध्यांन, लेऊं
परवाह
गंगजळ। वसूं जाय वनवास, हाड गाळूं हेमाळै।--पहाड़खां आढ़ौ
उदा.--
3..ताहरां साइल कहै--हूं
परवाह
देनै पछै साथै चढ़ीस। एकलौ चढूं नहीं।--नैणसी
उदा.--
4..हूं थांनूं पछै ले जाईस, बचन दीयौ। ताहरां जेलू रांणै नूं परणीया। यूं करतां भोजै
परवाह
रांणै सूं दूणी दीन्ही।--देवजी बगड़ावत री वात
2.देखो 'परवा' (रू.भे.)
उदा.--
मुझ मनि सिंघल द्वीप नी रे, पदमणी देखण चाह। तुझ परसादे सहु हुस्ये रे, हिव मुझ सी
परवाह
।--प.च.चौ.
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
Project
|
About Us
|
Contact Us
|
Feedback
|
Donate
|
संक्षेपाक्षर सूची