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परस  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.दो लघु के णगण गण के तीसरे भेद का नाम (डिं.को.)
2.देखो 'स्परस' (रू.भे.)
  • उदा.--आ कैय नै वा वनमाळी रै उनमांन उणी भांत गूंदी रा डाळा माथै चढी अर अजेज गाबड़ रै बालाजोड़ी मार नै टिरगी। परस व्हैतां ई गाबड़ चिमकी अर माळण तौ सगळा रै देखतां देखतां भींडी लांघती हां करतां अदीठ व्हैगी।--फुलवाड़ी
3.देखो 'परसरांम'।
  • उदा.--बदरी, टीकम, परस बुध, जग मोहण जैकारं। घणदाता आणंदघण, स्रीपति स्रब आधारं।--ह.र.
4.देखो 'पारस' (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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