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परिवार, परिवारि, परिवारी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.पुरिवारः परीवारः
1.अपने भरण-पोषण के हेतु किसी विशेष व्यक्ति के आश्रित रहने वाले लोग, आश्रित वर्ग, पोष्य-जन।
  • उदा.--चाहइ वेगि निरूपणा, सम पूरब पद चार लाल रे। पिण इण कलि मांहे नहीं, सांप्रति सहु परिवार लाल रे।--विनय कुमार कृत कुसुमांजलि
2.एक ही कुल में उत्पन्न लोगों का समुदाय, कुटुम्ब, कुनबा, परिजन-समुदाय।
  • उदा.--1..सउं परिवारिहिं सुं दलिहिं हस्तिनागपुरि नगरि आवइं, अन्नदिवसि रिसि नारदह नारि कज्जि आदेसु पांमइ।--पं.पं.च.
  • उदा.--2..राजा रांणी बरजै, बरजै सब परिवारी। सीस फूल सिर ऊपर सोहै, बिंदली सोभा न्यारी।--मीरां
3.तलवार की म्यान, कोष।
रू.भे.
परवार, परिबार, परीबार, परीवार, पिरवार।
अल्पा.
परबारौ, परिवारौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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