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परी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
फा.
1.अप्सरा (अ.मा.)
  • उदा.--परी वरी स्रुग वसै 'दळपत्ति'। उसी हिज केहर' कीध उकत्ति।--सू.प्र.
2.कोहकाफ पर्वत पर रहने वाली वे कल्पित स्त्रियां जो बहुत सुन्दर मानी जाती हैं और जिनके दोनों कंधों पर पर लगे रहते हैं।
3.एक पुष्प (अ.मा.)
4.एक प्रकार का बांण (अ.मा.)
5.देखो 'परौ' का स्त्री.।
  • उदा.--इतरी इवै कही तद नायण कही तौ हालौ आपां अठै सूं परी हालां। तद ऐ अठै सुं उठ अर नदी आई।--चौबोली
रू.भे.
परि।
पर्याय.--अच्छर, खीं, बारंगा, सारंगा, सारिका, सुरति।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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