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पहुंच, पहुंचण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.पुरभूत
1.पहुंचने की क्रिया या भाव।
2.किसी के कहीं पहुंचने की सूचना।
3.ऐसा स्थान जहाँ तक पहुँचा जा सके। ज्यूं--दीवाल घड़ी हाथ री पहुंच सूं ऊंची है।
4.किसी स्थान या व्यक्ति तक पहुंचने की शक्ति, सामर्थ्य।
  • उदा.--1..सह दरसै संसार, अंग आक्रत वण एक सम। चितवन समझ विचार, पहुचण कवण 'प्रतापसी'।--जैतदांन बारहठ
5.किसी विषय का होने वाला ज्ञान।
6.ज्ञान की सीमा।
रू.भे.
पउहंत, पहुंत, पहुत, पहूंत, पहूत्त, पहोंत, पहोच, पांत, पांथ, पुंहच, पुंहत, पोंच, पोंत, पोंहच, पोहंत, पो'च, पो'छ, पोहत, पोहोत्त, पौंथ, पौथ, पौइच, पौहत्त।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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