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पाग  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.पुदक=पग
1.सिर पर बांधने का वस्त्र पगड़ी।
  • उदा.--आज धुराऊ धुंधळौ, मोटी छांटां मेह। भींजी पाग पधारस्यौ, जद जांणूली नेह।--अज्ञात
2.देखो 'पग' (रू.भे.)
  • उदा.--ऊंचे गिरवर आग, जळती सह देके जगत। परजळती निज पाग, रती न दीसै राजिया।--कृपाराम बारहठ (खिड़िया)
3.देखो 'पाक' (रू.भे.)
रू.भे.
पाघ।
अल्पा.
पगड़ी, पग्गड़ी, पघड़ी, पघ्घड़ी, पागड़ी, पाघड़ी, पागणी। मह.--पगड़, पग्गड़, पघड़, पघ्घड़, पागड़, पागड़ौ।
विशेष विवरण:-पाग को पहले पैर के घुटने पर बांधते हैं और फिर सिर पर रखते हैं। इसी कारण इसका नाम पाग प्रतीत होता है।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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